बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

गुरुवार, 28 फ़रवरी 2013

मौसम


निकल गए रास्तों मे तो बहक हम जाएंगे...
बदली हैं अभी शाम तक सितारे छा जाएंगे...!!!

कब से मुह बाए खड़ी सींप दरींचो पर..
बचाओ उन्हे या कौड़ियाल शुक्र मनाएंगे...!!!

बड़ी तेजी से खींचती धूप नयी कोपले...
पकड़ ले वरना लोग दिन मे ही खो जाएंगे...!!!

महफ़िलों मे जरा आंखो पे सजा लेना...
बर्जे पर दो-चार आँसू छोड़ जाएंगे...!!!

बड़ी उदास मन से हर रोज पूछते मेंढक...
आखिर बरसातों के मौसम कब तक आएंगे...!!

मंगलवार, 26 फ़रवरी 2013

ठण्ड की वापसी....!!!


काफी दिनों बाद आज फिर कलम में रिफिल भरा दी...और टेस्ट चेक खातिर दुकान पर ही उतार दिया चंद अल्फाज...दुकानदार बाबू कह रहे थे राहुल ठण्ड गयी अब ऐश करो...हमने भी मुंडी हिला दिया...और छाप दिया कुछ पल दिमाग इतर बितर कर रहे थे...!!!!


वापसी की तैयारी में...
ठण्ड समेट रही संन्दूक...!!!

कुछ उधारी हैं...
कुछ बकाया भी...!!!

कोपले छुपाए बैठी हैं...
गौहर ओस के...!!!

बचाना कही रो ना दे..
वर्ना छींटा जाएंगे...!!!

लौटा सड़को के चश्मे
जिन्हें छीना था तूने...!!!

रूठे चाँद को भी मना...
तेरी करतूत से खफा हैं...!!!

धरा की भी सुन ले...
मफलर बाँध लेना...!!!

अब जा ट्रेन आ गयी ...
वरना देरी हो जाएगी...!!!

रविवार, 24 फ़रवरी 2013

ऑस्कर पिस्टोरियस" और "लांस आर्मस्ट्रांग"


ऑस्कर पिस्टोरियस" और "लांस आर्मस्ट्रांग" दोनों से हमारा काफी गहरा जुडाव था...दोनों खेल के रत्न थे...पर जिंदगी की कसौटी को खेल की बुनियाद कहा तक सम्हालेगी...!!!
आदर्श और उनके पदचिन्हों को पकड़ के चलने की परंपरा अब लगता हैं खत्म कर देनी चाहिए...जब आइकॉन ही ऐसे करतूत करेंगे तो...आम आदमी से क्या अपेक्षा की जाए...!!!
बड़ी भोर में अकेले निकल गया...
मैं भला आदमी ढूढने..!!!
कौन मदद करे मेरी...
सूरज आँख मीज रहा...
सितारे सामान सैन्हार रहे...!!!

शनिवार, 23 फ़रवरी 2013

बरामदे में...


नींद तम्बू तानने में लगी हैं...
ख्वाब पलकों पर चढ़े बैठे हैं...!!!

इन्ही सारे एहसासों को...
को एक गगरी में भर रहा...!!!

अबसारो से कुल्लियाँ मारता ...
मुह बाए बरामदे में खड़ा सुबह ...!!!

रात रानी...!!


चाँद के यहाँ दावत...
खाने पहुचना हैं...!!

तैयार हैं सभी..
जीन्स टी-शर्ट में..!!

टांक दो फलक पर...
कुछ चमकीले बटन...!!

निशा को सेंट लगाने..
पूरी शीशी लिए आई...!!
रात रानी...!!

अरे सभी गले मिल लो...
कल वो मर जाएगी..!!

शुक्रवार, 22 फ़रवरी 2013

कशिश...!!!

सूनी जिदगी बोझल होती....परछाई खोने का भी डर रहता...जाने और कितने डर रहते जेहन में कैद...कितनो को बतलाये...एक आकृति सजाने की कोशिश की हैं पकड़ लिए सूचित करियेगा...उसमे रंगों को भरवाना हैं...सूख गयी हैं उसे मुद्रक की स्याही...हमारे लिए तो अब केवल श्वेत श्याम तस्वीरे ही बनाता वो...कौन भरवाए उसकी "कार्ट्रिज में इंक"....!!!
एक एकांत सी जगह खोज रहा था मैं...
शायद सुनसान सा कब्र खोद रहा था मैं...!!!

कहने को काफी दलीले थी मन में..
चेहरे पर चादर ओढ़कर सो रहा था मैं...!!!

किसी कौतुहल से डरे हुए जीवन के...
ना जाने किसके पुराने बाँट जो रहा था मैं...!!!

किसी प्लेटफोर्म चीरकर धडधडाती रेल जैसे...
कितनो की जीवन में हल्ला बोल रहा था मैं...!!!

एक छत थी टपकती हुयी आशियाने में...
उससे अपनी दामन भीगो रहा था मैं...!!!

धुन भी थी मदमस्त हवाओं की आज...
फिर भी पंख उतार कर सो रहा था मैं...!!!

कितने काफिले आये गए यहाँ कौन बताये...
किसके पैरोंकी खनक को मसोश रहा था मैं...!!!

गुरुवार, 21 फ़रवरी 2013

अकेली सांझ...!!!

हर सांझ की तन्हाई जाने कितने सवाल अपने अन्दर बसाए रहती....थोड़ी दूर चलते हम...और शायद गली ही रूठ जाती हमसे...रास्ते ही ना होते आगे के...!!!
बड़ी अकेली बैठी शाम का दस्तूर हो गया ,
नजरें थी पास पर वो दिल से दूर हो गया .. !!

किसी चाह्दिवारी में सजे झूमरो जैसे,
वो चाँद भी हमारी पहुच से दूर हो गया .. !!

कितने ग़ज़ल दबे उन पीले किताबों में,
गुनाह किया कितने और वो बेकसूर हो गया .. !!

तनहाइयों ने छेड़ दी वो कशिश ज़िन्दगी में ,
मोहरा आएने में झाकने को मजबूर हो गया .. !!

एक अजब सी सवाल आँख मिजाते पूछती सुबह,
तेरा यार जो पास था वो कैसे दूर हो गया .. !!

बुधवार, 20 फ़रवरी 2013

कांचे का खेल...!!!


बड़ी आँड़ी तिरछी रास्तों में...
बिछी हैं सकरी गलियाँ...!!!

हर मोड़ पर दस्तक देती...
अलसाई साँझों की बालियाँ...!!!

सूरज ऐंठकर बैठा दूर...
बयार पकड़ी हैं डालियाँ...!!!

कांचे के इस खेल में अक्सर...
बदल जाती हैं गोलियाँ...!!!

पकड़ भाग रहा सब मंजर...
जैसे ब्याहे जा रही डोलियाँ...!!!

शुक्रवार, 15 फ़रवरी 2013

पतझड़ के पत्ते


आज बसंत था...लोग उसको अपने कंधे पर बिठाए घूम रहे थे पर...किसी ने नहीं देखा उन सूखे पत्तो को...जीवन की आखिरी बात जो रहे थे...आज मन नहीं हो रहा था लिखने का...या सच कहूँ तो कुछ सूझ नहीं रहा था...तभी मैं गुजर रहा था और सुना कराह रहे उन पत्तो की चुर्र चुर्र...!!!

बिछा हूँ जमीन पर...
लोग चढ़े जा रहे...!!!

कराह से मेरी व्याकुल..
पक्षी भागे जा रहे...!!!

कौन उठाये मुझे...
इतनी फुर्सत हैं किसे...!!!

हड्डियाँ तोड़ के...
मुझे कोने जला रहे...!!!

सुबह नए बच्चे लिए...
पेड़ खिल खिलाएंगे...!!!

पर उनको भी तो इश्वर...
वही दिन दिखलाएँगे...!!!

गुरुवार, 14 फ़रवरी 2013

इलाहबाद कुम्भ मेला...!!!!


त्रिवेणी के तट पर बैठा जाने कितने एहसास को अपने में लिए जा रहा हूँ...कुछ शाम की चमक हैं...साजो सजावट हैं...लोग हैं हाँ मुकुट धारी...!!!
फरवरी के चौदह तारीख...
उड़ेल रही अपनी चमक...!!!

बीहड़ो को काटते बड़ी मस्ती से...
बहती आ रही जमुना भी...
गले लगाने को आतुर संगम पर...!!!

पश्चिम की ओर बैठा सूरज...
मुहर लगा रहा सबके उपस्थिति की...!!!

कोई छुप के देख रहा बिना आये...
गंगा घुल रही जमुना में...!!!

सरस्वती मौन हैं साबुन लिए...
धुल रही सभी के पाप ...!!!

नैनी का पुल भी पहन लिया...
नयी आवरण देख मटक रहा...!!!

अकबर का किला सब कुछ साक्षी हैं इन त्रिवेदियों की हर एक कल-कल का...पूछ लेना बाद में सब कुछ हु-ब-हु बताएगा ये....सच कह रहा आज याद आ गए कुछ और पंक्तियाँ...जन कवि कैलाश गौतम की...!!!
"याद किसी की मेरे संग वैसे ही रहती हैं...
जैसे कोई नदी किसी किले से सटकर बहती हैं...!!!"

शनिवार, 9 फ़रवरी 2013

सायों पर साए....

बस चलता जाता एक सीधा सा रास्ता है..
बड़ी दूर किनारों पर कोई अपना बसता है..!!

गुल थामे अक्सर पहुँचते हैं जुगनू वहां..
शाम को सूरज वहाँ भी जल्दी डूबता है..!!

लालटेन फूँक रहती सारे तेल बाहर देख..
लिफाफे खोले बिना ही पूरी नज्मे पढता है..!!

बड़ी दर्द भरी रहती पीले पन्नो में देख..
शायद गुलाब खून में डुबो के लिखता है..!!

दिए सो जाते बड़ी जल्दी दवा खाकर..
वो उठकर साए पर साए को बुनता है..!!

बुधवार, 6 फ़रवरी 2013

बारिश



बड़ी बेदर्दी से रोता फ़लक...
उसपे फोटो खीचते ये अब्र...!!!

बड़ी दिनों से जमाकर रखी...
बर्फीली गिट्टी मार रहा धरा को...!!!

उधड गए महीन टाँके उसके...
सुबह ही लगवाया था जिन्हें..!!!

अब कल के अखबार मे देखना...
कहाँ कितना खून टपकाया...!!!

रविवार, 3 फ़रवरी 2013

एक बुजुर्ग आइना....



पुराने स्टोर रूम में बिफरा पड़ा था...
एक बुजुर्ग आइना...
मिट्टी सनी दाहिने हाथ की बुसट में...!!

बड़ी नर्म कलाइयों से झाड़ रहा...
पानी गिर रहा अन्दर ही मेरी अक्स से...
रो तो न रहा मैं...बाहर से...!!

साफ़ कर दिया...कुंडी में फंसे कपडे से..
उठा लाया उसे एक झूठ तामिल कराने...!!

रोज झांकता उसमे कितनी खुदगर्जी से..
पर देख बुढ़ापे में भी कितना
साफ़ देखता..वो बुजुर्ग आइना...!!

शुक्रवार, 1 फ़रवरी 2013

यादों को नज़ला...


चल रहे हैं मानो कुछ जानी पहचानी पुरानी गलियारे में जहा हर आवाज इतनी जानी पहचानी लगती...कुछ फूल दिए थे उसने निशानी की तौर पर लिए चल रहा हूँ उन्हें...ताकि दिख कर उन्हें अपनी पहचान बता सकू...!!!

यादों की हलकी गठरी लादे...
चल रहे पुरानी बस्तियों में...!!

ठण्ड से पाव सिकोड़ते टटोल रहे...
पोटली में गर्मी के अश्क...!!

कैद कर रखा था हमने जिन्हें..
एक जमाने में लोगो से बचा के...!! 

दो चार झुराए गुल पड़े हैं...
उनकी निशानी खातिर अब यहाँ...!!

उसे कुछ तो ओढा दे तुर्रंत...
वरना जम जाएंगे ठण्ड में...!!

नजला हो गया इन्हें देख...
कैसे सुडुक रहे ओस की गुच्छी...!!

छींकते ही बिखर जाएंगे अरमान..
फिर बटोरते रहना जिंदगी भर..!!