बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

सोमवार, 24 सितंबर 2012

बेटी दिवस स्पेशल...!!!

 
अम्मा आपके कोई बाल-बच्चे हैं...एक तडाक से आवाज आई...
बाल-बच्चे तो कोई नहीं हैं...बस तीन बेटियां हैं..!!!!
यह बात परिलक्षित करती है हमारी मानसिकता और सामाजिक स्थितियों को...भारतीय मां-बाप बेटियों को अपने सहारे के रूप में गिनकर नहीं चल सकते,
उन्हें पराई मानकर ही पाला जाता है..!!!

माथे पर टीका और थामे हाथ में झुनझुना...
लाल सूरज में अध्मुयीं सीपों सी जल रही...!!!
किरने भी फाक रही उसकी लटों की गोलियाँ...
भूल गया समाज देख बयार कंघा कर रही...!!!
लोग पुनमिया रात हुए भागे जैसे पिंड छुडाकर
देख यह अमावसी रात ही लोरी सुना रही...!!!
इतनी उल्फतों के फुहारे आर पार हुए फिर भी...
दिन भी हार गया और यह रण जीत रही...!!!
मुकद्दर रिसता आ गया ख़ाक के समुन्दरो से...
पर देख आज भी उन्ही तहखानो से लड़ रही ...!!!


कल बेटी दिवस पर लिखी गयी हमारी कुछ पंक्तियाँ पसंद आये तो सूचित करे..!!

पूनम की रात...!!!


आज बैठा एक झील पर शाम हुए कुछ सोच रहा था...लोग अनर्गल कहते जिसे...पास था कुछ पर्चे के टुकड़े पर...एक पुरानी नीब की पेन से...छिडक छिड़क के लिखा हूँ...कुछ...!!!
इस अधेरे में भी वो....
सिसकियाँ मौजूद रहती हवाओं में...!!!

जो धुएं से लिपटे चाँद में नहाती...
हुई बह जाती हैं किसी झील में...!!!

आहट भी लहरों में...
धमनियों जैसी फडकती रहती...!!!

कोई आला थामे आये और...
नाप जाए उनको एक लिखावट में...!!!

उस पर जलकुंभी ओढ़े...
बैठी सुबह झाकती चाँद को...!!!

अपने दर्द को बयान करने खातिर..
टकराकर लौटती बार बार...!!!

पर रोक रखती अपने जेहन में
दाबे जख्मों को ताकि निहार ले..
इस पूनम की रात को फिर आये न आये...!!!

गुरुवार, 20 सितंबर 2012

जिंदगी...!!!


बिन चिरागों में बैठी अमावसी रात जैसी,
दुनिया भी एक दुल्हन हैं सताई हुई...!!!

एक जेठ की तपतपाती धुप जैसी,
मेरे मजार परके फूल सी मुरझाई हुई...!!!
उन किरणों की तबस्सुम को लपेटे,
हंसी होंठों पे लाके दबाई हुई...!!!
हर मुखड़ों को ये किताबी झलकती,
कितना किताब्खानो में भरमाई हुई...!!!

मंगलवार, 18 सितंबर 2012

प्यार का गुल...!!!


गुल सम्हाले रखे हैं बस इन्तेजार हैं उनका,
पलके बिछाए बैठे हैं बस ऐतबार हैं उनका...!!!


हर पल साख से टूटते पत्ते बिखरते धरा पर,
कि दर्द नहीं वो तो बस प्यार हैं उनका...!!!


एक अर्शे से सुनने को तरस गयी जो..
आज चौखट पर खनकता झंकार हैं उनका...!!!


बस यही जिद्द चिपक कर बैठ गयी सांझ,
कि झील में उतरा हुआ ये चाँद है उनका...!!!


हर ज़र्रे में फिसलती हैं प्यास रूह की,
बस आये तो सही कुवां पास हैं उनका...!!! 

सोमवार, 17 सितंबर 2012

शब के मोती..!!!


हर रात के बाद एक उजाला मांगती जिंदगी में जाने कितने ऐसे क्यूँ आ जाते जिनका जवाब शायद इस कायनात में नहीं मिल पाता...मरहम तो मरहम दर्द भी चलते रहते उनके ना होने पर लोग उन्हें भी खोजते...और कुछ दर्द की परिकाष्ठा का माप तो छितिज तक ही मिलता...जो न कभी धरा पर मिला हैं और न ही कभी मिलेगा...!!!
शब रोती रह गयी पर कोई मनाने न आया,
चाँद टंगा फलक पर कोहनी बल चला आया...!!!


झील तो सो रहा था साँसे रोक कर ऐसे,
किसी का टपका आंसू उसे जगा आया...!!!


साहिलों पर अक्सर औंहाते सींप दिखे,
उन्होंने भी उसको कुछ बहला फुसलाया...!!!


अब तो आ गया सूरज टीले पर चढ़ने,
लगता उसी ने हमारी शब हैं भगाया...!!!
 

शनिवार, 15 सितंबर 2012

पता पूछती जिदगी..!!!

जिंदगी मजिल का पता पूछते बीत गयी...!!!
हर सुबह रोज निकलती घर से ओढ ढांप के,
चौराहे पहुचते किसी पनवडिये को देख गयी...!!!
चार तनहाइयों बाद एक हलकी सी तबस्सुम,
ऐसी ही आवाज मेरे कान को खुजला गयी...!!!
हमने भी देख लिया खांचो में बसे अपने दर्द को,
और एक बयार पुर्जा थामे आसियाने पंहुचा गयी...!!!
इस बीच क्या हुआ किसको बतालाये आलम,
जल्दी-जल्दी में बिना चाय पीये निकल गयी...!!!

लौटकर हमने मेज पर देखा तो पाया,
जाते जाते वो अपनी यादें ही भूल गयी...!!!
हिम्मत नहीं कि उड़ेल दे पिटारे उसके,
यूँ साँसे चौपते ही उसे बक्से में रख गयी...!!!

गुरुवार, 13 सितंबर 2012

जिंदगी की चाय..!!!


सुबह उठाते ही एक आस के साथ पहुच जाते लोग चाय के मैखानो में...जैसे कितना नशा होता उसमे और बहकते हुए खोजते छप्पर जिसके तले कंडे पर उबलती हुई चाचा की चाय...साथ में वो पड़े रगीन अखबार आकर्षित करते सबको झपटने पर...!!!
बड़ी अकेले सी जिंदगी चाय पीने निकली...
एक फटे पुराने छप्पर में रुककर वो...!!

अपने पुराने अल्फाजो को प्याले में डुबोकर,
कैसे उसे आराम से निगल रही...!!!

उसपे भी रो रहे चाचा की छत,
को ताक कर कुछ उसे इशारा करती...!!!

केतली से निकलती इलायची की अश्क,
उसे पकड़ कर जाने कहा सोच रही...!!!

गरमागरम चुस्की लेने को बेताब,
होंठो से दर्द फूँक फुंककर मिला रही..!!!

बुधवार, 12 सितंबर 2012

क्यूँ न तू...!!

कभी था पर कभी उसे ना पता हैं,
छोटी छोटी बातों में क्यूँ मद खपाता हैं...!!
एक सांझ रोज आती घूँघट काढ़े,
क्यूँ ना तू उसे अपने लिए मनाता हैं..!!!
देख रोज चाँद भटक आता यहाँ पर,
क्यूँ ना तू उस रौशनी में नहाता हैं...!!!
जिंदगी तो ठहरी मजदूर जन्नुम की,
क्यूँ ना तू कटोरे में रोटी प्याज सजाता हैं...!!
बूढी इमली पीछे दुधिया टोर्च थामे रखता,
दिन ठीक हैं वरना यह चाँद भी लडखडाता हैं...!!!

यादों के बस्ते...!!!

कभी प्यार इतनी थी उनसे,
कि यादें पड़ी हैं बस्ते में...!!!
हर ज़िक्र करते थे उनसे हम,
पर अब मिलती न रस्ते में..
बासी भले हो गयी यादें देख पर,

रंगत न उतरी इस गुलदस्ते में...!!!
क्या पहनाए आँखों को कटोरे,
देख अब आंशु बिके हैं सस्ते में ...!!!

गुरुवार, 6 सितंबर 2012

पुरानी एल्बम...!!!


बस लिए बैठा फटी पुरानी तस्वीरे...!!!
कुछ अन्सुझी सी एक उदासी लिए
लपेट रहा उसको धूल लभेडे अलबम में..!!
कुछ लम्हे काट कर जेहन में पिन कर लिए...!!!
पर कुछ को छोड दिया वही...पकड़ न सका...!!!
कई को देख आखों को लगा
कोई प्याज काट रहा बगल..!!!
कुछ चिंगारी उठी...धुवां सा हुआ...!!!
अब जलते शहर में क्या करे कोई शायर...!!!
 

मंगलवार, 4 सितंबर 2012

आयतें फूकते रहे...


खुद को साजाएं देके उसे ढूढते रहे .. !!

यादें हो किसी अधजली लकड़ी जैसे ..
बार बार उसमे आयतें फूकते रहे .. !!

हर एक निकलते धुएं को पकड़ ...
हम भी बस उसी की "आकृति" गुथते रहे .. !!

एक आग सहारे बैठे उन बर्फीले गुफाओं में ..
खून के सफ़ेद होने का इन्तेजार करते रहे ..!!

इन बर्फो पर जमा किया रंगीन गुल फिर भी ..
बांज की कोख जितनी ही उम्मीद पालते रहे .. !!

सोमवार, 3 सितंबर 2012

आकृति...


किसी अनजाने जगह को मैं तडपता हूँ..
अरसो से सोया हूँ फिर भी मैं बहकता हूँ...!!!

एक आग की चिगारी बदन में उतारने को,
सूखे रेतों में कितने पत्थरों को रगड़ता हूँ...!!!

एक बरस गुस्साई इस सांझ को मनाने को..
झील में उतरी चांदनी पकड़ने मचलता हूँ...!!!

बड़ी कशिश थामे उस फलक को देखते...
उनमे अपनी "आकृति" लिए बलखता हूँ...!!!

सुबह जल्दी आ जाती रात भगाने को...
तमाम सूरजों को जेबों में लिए टहलता हूँ...!!!

इतने अनबुझे राख थामे यादों के थैलों में...
जाने किस चमत्कारी भभूत खातिर तरसता हूँ..!!!

रविवार, 2 सितंबर 2012

कभी कभी पूछते लोग...!!!

कभी कभी पूछ बैठते लोग कहाँ से उतार लेते खीचकर अपने भीगे अल्फाज हम...!!!
एक साथ कभी बैठती सुबह...जिसके कंधे पर छोटे बच्चे की तरह लदी बयार...!!!
पहुच जाती मेरे बालों के गांठो को खोलने...!!!
उसपर यह मंद मंद मुस्काता सूरज थोड़ी ही देर में उबल जाता जैसे फफक पड़ता ढूध से भरा भगौना..!!!

कुछ अब्र उसके आस पास घुमते मानो आँख मिचौली खेल रहे हो...!!!
इतनी सब के नीचे कैसे रखे कार्बन जो उभार दे सारी सिसकियों के पीछे छुपे बैठे वो जख्म...!!!
जाने इतना कुछ किस श्याही में उभरे अब उन्हें कौन बताए...!!!
कभी कभी पूछते लोग...!!!

शनिवार, 1 सितंबर 2012

खामोशियाँ.....

ख्वामोसियाँ जैसे उधेड़ गयी सारी रेशम से लिपटी ख़्वाबों की तस्तारियां ... !!!
शायद मेरी सलाई भी मुकद्दर चुरा ले गया ताकि दुबारा सिल ना सकू... !!!
अपनी यादों के उन लकीरों को... !!!
किस्मत तो शायद गर्दिसों की बालकनी में मजे ले रही हैं... !!!
और दूर सुनसान एक अकेली साहिल के करीब करीब बैठा मैं ... !!!

एक ठूठे पेड़ जैसे उम्र और झंझावातों की मटीयाई सी चादर ओढ़े इन्तेजार कर रहा उस सावन का ... !!!

बरसात...

उन बरसात के पानी में कितना अपनापन हैं...
हलकी सी बारिश में भी घुटनों तक चले आते बदन को छूने...
लड़ते गुजरते घरों मकानों के दीवारों से टकराते हुए...
पनाह देते खेल कर जीते हुए उन लडको को...
जो अपने आनंद को दर्शाने खातिर उतर जाते उनके गोद में...!!!

धुंध से धुंधला...


धुंध आँख से ओझल हो चूका हैं,
फूल डाल से टूट चूका हैं,
खो गया सब कुछ यहाँ भी,
दिशायें पहचान सब लुट चूका हैं..!!!
तलवार छुटी... अश्व घायाल,
देख ये क्या से क्या हो चूका हैं...!!!
कौन दुश्मन और कौन दोस्त,
सब धुंध से धुधला हो चूका हैं..!!!
सुना हैं भींड में जैकार सुनाई नहीं देती,
तभी इन मातमो को झीगुरो से सजा रखा हैं ...!!!
बस टूटा पहिया ही साथ रहे मेरे,
इन्ही के सहारे चक्रव्यूह को भी भेदा जा सकता हैं…!!!