बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 18 फ़रवरी 2018

फागुन क बदरा (भोजपुरी)

फागुन क बदरा,
झूमत बा रे।
पासे बैठावे खातिर,
क़हत बा रे।।

उड़ाई क गुलाली,
जरा ए बाबू।
नजरिया मिलावे खातिर,
क़हत बा रे।।

झूमी झूमी खेतिया मे,
रंग छितराये,
लाली लाली गालिया मे,
बसत बा रे।

गोरी गोरी मूहवा पे,
चढ़त रंगवा।
बरवा लटियावे खातिर,
पुछत बा रे।।

खोजत बा आपन,
पुरान बालम देख।
रंगवा से नहवाए क,
खोजत बा रे।।

मीठ मीठ चढ़ल बा,
कराही चूल्ही प।
जउन जउन पकवान,
बनत बा रे।।

फागुन क बदरा,
झूमत बा रे।
पासे बैठावे खातिर,
क़हत बा रे।।

- खामोशियाँ (मिश्रा राहुल)

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