बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 27 जून 2015

पुरानी लिबास



पुरानी लिबास पहनकर निकल गए,
हम गलियों से मिलकर निकल गए।

आदाब करती है बातें खतों में उलझी,
हम लिफाफों को मनाकर निकल गए।

दूर जाऊँगा तो याद आएगी ना तेरी,
तस्वीर झोले में छुपाकर निकल गए।

ये फिजाएं आज तक गुलाम है तेरी,
उम्मीद-ए-चिराग लेकर निकल गए।

जीने की तस्सवुर नहीं होती बिन तेरे,
गुजारिश अपनी बताकर निकल गए।

गज़ल | खामोशियाँ | २६-जून-२०१५
मिश्रा राहुल | ब्लोगिस्ट एवं लेखक


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