बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शुक्रवार, 15 अगस्त 2014

Genesis 1


एक आरज़ू
खिली है,
वादियों में मेरे।

रोज़ महकती,
रोज़ बहकती,
उसी की तब्बसुम से
भीगती मेरी नज़्म,
हौले-हौले से बोलती।

गुंजन करती लहरें
कितना कुछ कहती,
आवृत्ति करती बार-बार,

और धुन बजाती,
उसमे सराबोर मैं,
कुछ और सुन भी ना पाता।

बस गुनगुना लेता,
कुछ उसी के सुर निकाल।

©खामोशियाँ-२०१४//मिश्रा राहुल
(१६-अगस्त-२०१४)(डायरी के पन्नो में)

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