बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

रविवार, 21 अप्रैल 2013

दुपहरी:


दुपहरी वक़्त सेंकती
धरा तपता तावा लिए...!!

लूह के थपेड़े जला रहे
बार-बार बुझती अगीठी...!!

साँझ रोज़ चाली आती
थामे रंग बिरंगे आइस-क्रीम ...!!

आज भी याद वो पश्मीना
शाल ओढे दरवाजा...
काट लिया पूरी सर्दी...!!

पसीने छूट रहे उसके...
शीशम रो रहा शायद...!!

खीच के देख ले करकराहट
जमी हैं उसकी सिसकियों मे...!!

~खामोशियाँ©

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