बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 23 मार्च 2013

पुरानी केतली...!!!


टूटी छप्पर लांघती...
सुबह की तिरछी धूप...!!

मद्धिम आंच पर ...
फफक पड़ती चाय...!!

हाथ पैर जलाए बैठे...
प्लेट मे छितराए कचौड़े...!!

रंग बिरंगी चटनी...
उड़ेलती कलछुल...!!

धुँए पांव फैलाये...
देख कमरे भंठ गए...!!

उफ़्फ़...
कितनी बीड़ी फूँकती...
ये पुरानी केतली...!!

~खामोशियाँ©

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