बड़ी खामोसी से बैठे हैं फूलो के धरौदे....जरा पूछ बतलाएंगे सारी गुस्ताखिया....!!!______ प्यासे गले में उतर आती....देख कैसे यादों की हिचकियाँ....!!!______ पलके उचका के हम भी सोते हैं ए राहुल....पर ख्वाब हैं की उन पर अटकते ही नहीं....!!!______ आईने में आइना तलाशने चला था मैं देख....कैसे पहुचता मंजिल तो दूसरी कायनात में मिलती....!!! धुप में धुएं की धुधली महक को महसूस करते हुए....जाने कितने काएनात में छान के लौट चूका हूँ मैं....!!!______बर्बादी का जखीरा पाले बैठी हैं मेरी जिंदगी....अब और कितना बर्बाद कर पाएगा तू बता मौला....!!!______ सितारे गर्दिशों में पनपे तो कुछ न होता दोस्त....कभी ये बात जाके अमावास के चाँद से पूछ लो....!!!______"

शनिवार, 27 अक्तूबर 2012

आईना...!!!

इन आएनो में अब वो कुर्बतें भी नहीं,
अक्स झांकता हैं बहार पर दिखता ही नहीं .. !!

कुर्शिया भी तलाशती बैठने किसी को,
मेहमानों में कभी वो नजर आता ही नहीं .. !!

पलटते चले गए पन्ने अखबार के,
इश्तिहार बनी ज़िन्दगी से अब वास्ता ही नहीं .. !!

धुवे लादे हुवे अब्रा पसरे फलक पर,
परिंदों को कोई रास्ता दिखलाता ही नहीं .. !!

चाहते भटक जाए इन घने जंगलों में,
पर कोई शाम को वहा जाने देता ही नहीं...!!!

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